
संविधान सभा की प्रारूप समिति गठन 29 अगस्त 1947 के बारे मे विस्तार से और आसान भाषा मे जाने इससे जुड़े जरूरी सवाल जवाब भी जाने
संविधान सभा की प्रारूप समिति का गठन (29 अगस्त 1947)
प्रस्तावना
भारत के संविधान का निर्माण एक ऐतिहासिक कार्य था, जिसे स्वतंत्र भारत के भविष्य की दिशा तय करनी थी। इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए एक समिति की आवश्यकता थी, जो संविधान का प्रारूप तैयार करे। यह कार्य संविधान सभा द्वारा सौंपा गया, और इसके लिए 29 अगस्त 1947 को एक विशेष समिति गठित की गई जिसे “प्रारूप समिति (Drafting Committee)” कहा गया।
संविधान सभा का परिचय (संक्षेप में)
भारत की संविधान सभा का गठन 1946 में हुआ था। इसका मुख्य कार्य था:
- भारत के लिए एक नया संविधान बनाना।
- स्वतंत्रता के बाद शासन की रूपरेखा तय करना।
इस सभा में कुल 299 सदस्य थे और इसका पहला अधिवेशन 9 दिसंबर 1946 को हुआ था।
प्रारूप समिति का गठन – 29 अगस्त 1947
कारण:
संविधान सभा में कई समितियाँ बनाई गईं थीं, परंतु जब संविधान का प्रारूप तैयार करने का समय आया, तब एक विशेष समिति की जरूरत पड़ी जो संपूर्ण दस्तावेज को अंतिम रूप दे सके।
गठन की तिथि:
29 अगस्त 1947 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जो उस समय संविधान सभा के अध्यक्ष थे, उन्होंने प्रारूप समिति का गठन किया।
प्रारूप समिति के सदस्य
प्रारूप समिति में कुल 7 सदस्य थे:
क्रम | सदस्य का नाम | विशेषता |
---|---|---|
1. | डॉ. भीमराव अंबेडकर (अध्यक्ष) | संविधान शास्त्री, सामाजिक न्याय के अग्रदूत |
2. | एन. गोपालस्वामी आयंगार | अनुभवी प्रशासक |
3. | अलादि कृष्णस्वामी अय्यर | उच्च न्यायविद |
4. | के. एम. मुंशी | स्वतंत्रता सेनानी व लेखक |
5. | सैयद मुहम्मद सादुल्ला | वरिष्ठ वकील |
6. | बी. एल. मित्रा | संविधान विशेषज्ञ (बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया) |
7. | डी. पी. खेतान | कानून के ज्ञाता (निधन के बाद टी. टी. कृष्णमाचारी ने स्थान लिया) |
बदलाव:
- बी. एल. मित्रा के स्थान पर किसी और को नहीं जोड़ा गया।
- डी. पी. खेतान के निधन के बाद टी. टी. कृष्णमाचारी को नियुक्त किया गया।
प्रारूप समिति का कार्य और प्रक्रिया
प्रमुख कार्य:
- संविधान के विभिन्न प्रस्तावों का विश्लेषण करना।
- संविधान का प्रारूप बनाना जिसमें मौलिक अधिकार, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत, संघीय संरचना आदि शामिल थे।
- संविधान को एक व्यावहारिक और न्यायसंगत दस्तावेज़ बनाना।
कार्यकाल और बैठकें:
- प्रारूप समिति ने लगभग 141 दिन बैठक की।
- संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
- डॉ. अंबेडकर ने इसे “संविधान का ढांचा तैयार करने का गंभीर उत्तरदायित्व” कहा।
डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूमिका
डॉ. भीमराव अंबेडकर न केवल इस समिति के अध्यक्ष थे, बल्कि उन्होंने संविधान की आत्मा को समझते हुए उसे अंतिम रूप देने में अग्रणी भूमिका निभाई।
उनकी विशेषताएँ:
- उन्होंने कानून का गहरा अध्ययन किया था।
- वे सामाजिक न्याय के सशक्त पक्षधर थे।
- उन्होंने संविधान में सामाजिक समानता, दलितों और पिछड़ों के अधिकार, स्त्रियों की स्थिति आदि पर विशेष ध्यान दिया।
उनके नेतृत्व में भारतीय संविधान को न केवल न्यायसंगत बनाया गया, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए उपयुक्त दस्तावेज भी बना।
प्रारूप समिति द्वारा प्रस्तुत प्रारूप
- प्रारूप समिति ने 4 नवम्बर 1948 को संविधान का पहला मसौदा (Draft Constitution) संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया।
- इसके बाद उस पर संविधान सभा में 11 महीने से अधिक समय तक बहस हुई।
- कुल मिलाकर संविधान सभा में इस पर 114 दिन तक बहस हुई।
- अंततः संविधान को 26 नवम्बर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
प्रारूप समिति की विशेषताएँ
- व्यापक अध्ययन – समिति ने अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के संविधानों का अध्ययन किया।
- जनहित को प्राथमिकता – नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को प्राथमिकता दी गई।
- संघीय संरचना – भारत को एक संघीय देश बनाने की व्यवस्था की गई।
- न्याय और समानता – सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय पर ज़ोर।
महत्वपूर्ण बातें (संक्षेप में)
- प्रारूप समिति का गठन – 29 अगस्त 1947
- अध्यक्ष – डॉ. भीमराव अंबेडकर
- सदस्यों की संख्या – 7
- मसौदा पेश किया गया – 4 नवम्बर 1948
- संविधान स्वीकार किया गया – 26 नवम्बर 1949
- संविधान लागू – 26 जनवरी 1950
निष्कर्ष
प्रारूप समिति का गठन भारतीय संविधान निर्माण की प्रक्रिया में एक निर्णायक कदम था। डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनके सहयोगियों ने एक ऐसा संविधान तैयार किया जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव बना। समिति की मेहनत, समर्पण और दूरदृष्टि के कारण ही भारत आज एक सफल लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में जाना जाता है।
प्रारूप समिति से संबंधित 25 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
क्रम | प्रश्न | उत्तर |
---|---|---|
1 | प्रारूप समिति का गठन कब हुआ था? | 29 अगस्त 1947 |
2 | प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे? | डॉ. भीमराव अंबेडकर |
3 | प्रारूप समिति में कुल कितने सदस्य थे? | 7 |
4 | प्रारूप समिति ने संविधान का मसौदा कब प्रस्तुत किया? | 4 नवम्बर 1948 |
5 | संविधान कब अंगीकृत हुआ? | 26 नवम्बर 1949 |
6 | संविधान कब लागू हुआ? | 26 जनवरी 1950 |
7 | प्रारूप समिति में टी. टी. कृष्णमाचारी किसके स्थान पर आए? | डी. पी. खेतान |
8 | प्रारूप समिति में बी. एल. मित्रा ने क्या किया? | उन्होंने इस्तीफा दे दिया |
9 | प्रारूप समिति की कितनी बैठकें हुईं? | 141 से अधिक |
10 | संविधान सभा में मसौदे पर बहस कितने दिन चली? | 114 दिन |
11 | संविधान को अंतिम रूप देने में कुल कितने महीने लगे? | लगभग 2 साल 11 महीने 18 दिन |
12 | संविधान की प्रस्तावना किसने लिखी? | प्रारूप समिति द्वारा बनाई गई, अंबेडकर द्वारा प्रस्तुत |
13 | भारत के संविधान में कितने भाग हैं? | वर्तमान में 25 (शुरू में 22) |
14 | प्रारंभ में संविधान में कितनी धाराएं थीं? | 395 |
15 | संविधान की मूल प्रति किस भाषा में है? | हिंदी और अंग्रेजी दोनों |
16 | संविधान निर्माण के समय संविधान सभा अध्यक्ष कौन थे? | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
17 | प्रारूप समिति के सदस्य के. एम. मुंशी कौन थे? | लेखक, अधिवक्ता, स्वतंत्रता सेनानी |
18 | प्रारूप समिति में सैयद सादुल्ला का योगदान? | कानूनी विशेषज्ञ |
19 | भारतीय संविधान के स्रोत कौन-कौन से थे? | ब्रिटेन, अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा आदि |
20 | प्रारूप समिति का मुख्य उद्देश्य क्या था? | संविधान का मसौदा तैयार करना |
21 | भारत का संविधान किस प्रकार का है? | लिखित, विस्तृत, लोकतांत्रिक |
22 | क्या डॉ. अंबेडकर को संविधान निर्माता कहा जाता है? | हाँ, उन्हें संविधान का प्रमुख निर्माता माना जाता है |
23 | संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई? | 9 दिसम्बर 1946 |
24 | प्रारूप समिति की पहली बैठक कब हुई? | सितम्बर 1947 में |
25 | संविधान को लागू करने की तिथि क्यों चुनी गई? | 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज दिवस मनाया गया था |
प्रारूप समिति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जब भारत की संविधान सभा का गठन हुआ तो उसके सामने सबसे बड़ा सवाल था – “कैसा संविधान बनाया जाए?”
ब्रिटिश भारत की विरासत:
ब्रिटिश शासन में कई अधिनियम (जैसे – 1909, 1919, 1935) लागू हुए थे। इन अधिनियमों से भारत में शासन की रूपरेखा तो बनी थी, लेकिन वे भारतीयों की इच्छाओं और जरूरतों को पूरा नहीं करते थे।
स्वतंत्र भारत की जरूरत:
भारत एक विविधता से भरा देश था – धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, संस्कृति आदि के आधार पर। इसलिए एक ऐसा संविधान चाहिए था जो सबको बराबरी दे, सबकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखे, और एकता बनाए रखे।
इसलिए जब 29 अगस्त 1947 को प्रारूप समिति का गठन हुआ, तो यह भारत के भविष्य की रूपरेखा तैयार करने का ऐतिहासिक क्षण था।
प्रारूप समिति की विशेषताएं
1. समावेशी दृष्टिकोण (Inclusive Approach):
प्रारूप समिति ने सभी वर्गों, समुदायों और क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए संविधान की रचना की।
2. अन्य देशों के संविधानों का अध्ययन:
प्रारूप समिति ने करीब 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया। इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
देश | लिया गया सिद्धांत |
---|---|
अमेरिका | मौलिक अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता |
ब्रिटेन | संसदीय प्रणाली |
आयरलैंड | नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) |
ऑस्ट्रेलिया | संघीय व्यवस्था |
कनाडा | शक्तियों का विभाजन |
3. जनता की भागीदारी:
संविधान सभा ने जनता से भी सुझाव मांगे थे, जिनमें से कई सुझावों को प्रारूप समिति ने शामिल किया।
4. संतुलित संविधान:
इसमें स्वतंत्रता और अनुशासन, अधिकार और कर्तव्यों, संघ और राज्यों के बीच संतुलन को प्रमुखता दी गई।
प्रारूप समिति द्वारा शामिल प्रमुख सिद्धांत
- मौलिक अधिकार – जीवन, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति, धर्म, समानता का अधिकार।
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत – सरकार को समाजवादी और कल्याणकारी राज्य की दिशा देना।
- संघीय ढांचा – केंद्र और राज्य दोनों की अपनी-अपनी शक्तियाँ।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता – न्याय प्रणाली को सरकार से स्वतंत्र रखना।
- संसदीय प्रणाली – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का संतुलन।
समिति द्वारा सामना की गई चुनौतियाँ
विविधताओं को जोड़ना:
भारत की इतनी विविधता को एक संविधान में समेटना चुनौतीपूर्ण था।
प्रारूप समिति को यह सुनिश्चित करना पड़ा कि:
- हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको समान अधिकार मिले।
- महिलाओं को समान दर्जा और सुरक्षा मिले।
- आदिवासी और पिछड़े वर्गों के अधिकार सुरक्षित रहें।
भाषा का प्रश्न:
संविधान किस भाषा में लिखा जाए?
हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों को उपयोग में लाया गया।
बाद में संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में तैयार की गई।
धर्मनिरपेक्षता और समान नागरिक संहिता:
इन दोनों विषयों पर बहुत बहस हुई, और अंततः यह सुनिश्चित किया गया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा।
प्रारूप समिति की कार्य योजना का टाइमलाइन (Timeline)
दिनांक | कार्य |
---|---|
29 अगस्त 1947 | प्रारूप समिति का गठन |
नवम्बर 1947 – अक्टूबर 1948 | मसौदे पर चर्चा, संशोधन |
4 नवम्बर 1948 | पहला ड्राफ्ट प्रस्तुत |
15 नवम्बर 1948 – 24 नवम्बर 1949 | मसौदे पर बहस |
26 नवम्बर 1949 | संविधान अंगीकृत |
26 जनवरी 1950 | संविधान लागू– |
प्रारूप समिति का योगदान क्यों ऐतिहासिक है?
- दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का संविधान बनाया।
- लिखित और सबसे विस्तृत संविधान की रचना की।
- सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, कानून का शासन जैसे मूल्यों को स्थापित किया।
- डॉ. अंबेडकर के नेतृत्व में यह कार्य भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी बौद्धिक उपलब्धियों में से एक है।
और 10 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
क्रम | प्रश्न | उत्तर |
---|---|---|
26 | प्रारूप समिति ने किस देश के संविधान से मौलिक अधिकार लिए? | अमेरिका |
27 | नीति निर्देशक सिद्धांत कहां से लिए गए? | आयरलैंड |
28 | संविधान का मूल ढांचा किस समिति ने तैयार किया? | प्रारूप समिति |
29 | संविधान सभा में मसौदा पेश करने वाले प्रमुख व्यक्ति कौन थे? | डॉ. अंबेडकर |
30 | संविधान में कितने अनुच्छेद प्रारंभ में थे? | 395 |
31 | डॉ. अंबेडकर को किस उपाधि से जाना जाता है? | भारतीय संविधान के निर्माता |
32 | प्रारूप समिति ने किसकी अध्यक्षता में कार्य किया? | डॉ. अंबेडकर |
33 | प्रारूप समिति का उद्देश्य क्या था? | संविधान का मसौदा तैयार करना |
34 | प्रारूप समिति के सदस्य डी. पी. खेतान का क्या हुआ? | उनका निधन हो गया |
35 | प्रारूप समिति में कौन सदस्य बाद में शामिल हुए? | टी. टी. कृष्णमाचारी |
निष्कर्ष (Conclusion)
संविधान सभा की प्रारूप समिति ने एक ऐसा संविधान तैयार किया जो आज भी भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की नींव है। डॉ. अंबेडकर जैसे महान नेताओं के मार्गदर्शन में तैयार यह दस्तावेज़ न केवल भारत के कानून का आधार बना बल्कि सामाजिक समानता, न्याय और लोकतंत्र का प्रतीक भी है। प्रारूप समिति का कार्य भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर है।
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